बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
उत्तर -
काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।-
काण्ट के नीतिशास्त्र की सबसे बड़ी विशेषता कठोरतावाद है। कठोरतावाद दो प्रकार का है-
(i) पहला नैतिक जीवन में भावना को कोई स्थान देना नहीं चाहता
(ii) नैतिक नियम में कोई भी अपवाद स्वीकार नहीं करता।
काण्ट के अनुसार भावना से प्रेरित प्रत्येक कार्य अनुचित है यदि कोई व्यक्ति किसी के दुःख से दुःखी होकर रोता है तो वह सर्वथा अनुचित है क्योंकि ऐसा करके वह संसार के दुःख के बोझ को और भी बढ़ाता है उसे चाहिए कि वह दूसरों के दुःख को दूर करे न कि उसे बढ़ाये या उससे दुःखी हो। काण्ट के अनुसार प्रत्येक कार्य शुद्ध कर्तव्य की भावना से किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसी भी भावना से किया गया कार्य, चाहे वह भावना कितनी भी ऊँची क्यों न हो, सर्वथा अनैतिक होगा। काण्ट का तात्पर्य यह नहीं था कि कर्तव्य बुद्धि के साथ किसी भी भावना का होना बुरा है उसका केवल यही कहना था कि प्रेरक भावना नहीं, बल्कि बुद्धि होनी चाहिए।
उपरोक्त मत किसी प्रकार का निर्बुद्धि हठवाद नहीं है बल्कि बौद्धिक कठोरतावाद है। वास्तविक जीवन में दूसरों के दुःख में दुःखी व्यक्तियों को बुरा नहीं कहा जाता, भावना मनुष्य की दुर्बलता है, परन्तु उसी से वह मनुष्य है अन्यथा वह देवता या पशु होता और जब तक मनुष्य इनमें से कोई नहीं हो जाता तब तक नैतिक जीवन में भावना का मूल्य मानना ही होगा।
काण्ट के नीतिशास्त्र की दूसरी विशेषता नैतिक नियमों की सार्वभौमिकता और निरपेक्ष का प्रतिपादन है सुखवाद के अनुसार नैतिक नियमों का महत्व उसके परिणाम पर आधारित है इस प्रकार नैतिक नियम व्यक्ति की व्यवसायिक बुद्धि पर आधारित हो जाते हैं। यहाँ पर काण्ट के 'निरपेक्ष नैतिक आदेश सिद्धान्त का बड़ा महत्व है। काण्ट के नैतिक नियमों का निरपेक्ष सार्वभौम आदेश मानकर बड़े सत्य को स्थापना की।
काण्ट के नीतिशास्त्र की तीसरी विशेषता बुद्धि को सर्वश्रेष्ठ मान कर यथार्थ सत्य का प्रतिपादन किया। मानव को व्यक्ति की संज्ञा देने वाला तत्व बुद्धि ही है। आत्म त्याग ही आत्मसाक्षात्कार का पहला सोपान है। परन्तु यह भी स्मरण रखना चाहिए कि आत्मसाक्षात्कार के लिए निम्न प्रवृत्तियाँ का दमन नहीं बल्कि रूपान्तर होना चाहिए -
काण्ट के नीतिशास्त्र की चौथी विशेषता अन्तरात्मा में आस्था है। काण्ट के अनुसार भूल करने वाली आत्मा एक मरीचिका मात्र है। मानव की आत्मा उसको भूल करने से सदैव रोकती है। नैतिक अपराध उस अन्तरात्मा की आवाज को न सुनने के कारण होते है।
गीता के निष्काम कर्म योग से तुलना - निष्काम कर्म का अर्थ प्रेरणा हीन कर्म न होकर समत्व बुद्धि से ईश्वरारोपण की भावना से कर्म करना है अतः गीता के अनुसार परिणाम की इच्छा से किये गये कर्म नैतिक नहीं है। भगवत गीता उपयोगितावादी नहीं है उसके अनुसार जो कर्म फल की भावना से कर्म करते है, वे अत्यन्त हीन हैं। इसी प्रकार काण्ट ने परिणाम को नैतिकता का विषय नहीं माना है काण्ट के अनुसार संसार में शुभ संकल्प से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। काण्ट और दूसरी तुलना यह है कि दोनों ने ही लोक सेवा पर जोर दिया है। तीसरी तुलना समानता भावनाओं के संयम को लेकर है। मानसिक प्रवृत्तियाँ कर्म को प्रेरक नहीं ही सकती। राग, द्वेष की प्रेरणा से कर्म करने से मनुष्य भव चक्र में फंसता है। काम से क्रोध और क्रोध से मोह होता है तथा मोह से स्मृति भंग और स्मृति भंग से बुद्धि का नाश होता है। इस प्रकार मानसिक प्रवृत्तियाँ अज्ञान की ओर ले जाती है। गीता ने राग और द्वेष दोनों का परित्याग करने का उपदेश दिया है अनासक्त होकर कर्म करना ही श्रेष्ठ है। गीता का मत काण्ट के नीतिशास्त्र के बहुत निकट है काण्ट के अनुसार निकृष्ट इच्छाओं का दमन परम कर्तव्य हैं। काण्ट और गीता दोनों ने व्यक्तिगत और सामाजिक हितों की परस्पर सम्बद्ध माना है और लोक सेवा का उपदेश दिया है, परन्तु जहाँ काण्ट के लिए लोक सेवा का प्रेरक कारण नैतिक नियम के प्रति आस्था है वहाँ गीता में सभी कर्मों का एकमात्र ध्येय भगवद प्राप्ति है। अतः जहाँ काण्ट के लिए कर्तव्य परम लक्ष्य है वहाँ गीता ने ईश्वर का परम लक्ष्य माना है। काण्ट का नीतिशास्त्र नियम वादी है गीता का निष्काम कर्म प्रयोजनवादी है। काण्ट के अनुसार नीतिशास्त्र ही मानव की प्रगति का अन्तिम सोपान है। गीता के निष्काम कर्म के अनुसार नीति से परे धर्म है और धर्म से भी आध्यात्मिकता है।
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- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
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- प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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